भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं जिसे ढूंढा किया हर सू वो मेरे दिल में है / ईश्वरदत्त अंजुम
Kavita Kosh से
मैं जिसे ढूंढा किया हर सू वो मेरे दिल में है
मैंने जिस दिलबर को चाहा वो इसी महफ़िल में है
कर गया हम से किनारा और जुदाई दे गया
उसको क्या मालूम क्या कोई किस क़दर मुश्किल में है
देखिये अब दार मिलती है हमें या उसका दर
कामयाबी इस की अब जज़्बा-ए-कामिल में है।
मंज़िलें सब तय हुई और अब कोई मंज़िल नहीं
प्यार मेरा अब तो अंजुम आखिरी मंज़िल में है