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मैं जीवन-समुद्र पार कर के / अज्ञेय

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 मैं जीवन-समुद्र पार कर के विश्राम के स्थल पर पहुँच गया हूँ।
जिस तू फान में मैं खो गया था, उस में से निकलने का पथ विद्युत् के प्रकाश की एक रेखा ने इंगित कर दिया है।
प्रेम को प्राप्त करना, जीवन के मिष्टान्नों को चखना और जीवन के मीठे आसव में मत्त रहना मेरे लिए नहीं है। मेरा काम केवल इतना ही है कि जो प्रेम औरों ने प्राप्त किया है, जिस आसव ने दूसरों को उन्मत्त किया है, उस की पवित्र मिठास को अपनी वाणी द्वारा संसार-भर में फैला दूँ-
और जो दु:ख और क्लेश मैं ने देखे हैं, उन्हें अपने पास संचित कर लूँ-उस से एक विराट् समाधि बना लूँ जिस में मृत्यु के बाद मेरा शरीर दब जाए।
मैं विश्राम के स्थल पर पहुँच गया हूँ-अब अपना अन्तिम कार्य पूरा कर के विश्राम करूँगा।

दिल्ली जेल, 25 दिसम्बर, 1932