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मैं जीवन के इकतारे पर / कृष्ण मुरारी पहारिया
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मैं जीवन के इकतारे पर
गाता हुआ कबीर
जगा रहा हूँ घट-घट में
सदियों की सोई पीर
आज नहीं मेरे स्वर थकते
किसी सहारे का मुँह तकते
कौन हाथ जो उनको ढकते
फैल रहे हैं दिग-दिगन्त में
आडम्बर को चीर
आज कण्ठ में जीवन आया
आघातों से ही बल पाया
कौन करेगा काली छाया
समा गया है गीतों में
आहत नयनों का नीर
21.08.1962