मैं टूटने की तरकीब हूँ / अनामिका अनु
मैं टूटने की तरकीब हूँ।
मैं बँधने का इशारा भी। मैं दो ध्रुवों को बाँधकर चलती हूँ। मैं विस्तार को लपेटकर संक्रीण गलियारों में खोया सच हूँ।
मैं असंबद्ध भाषाओं के बीच का विवेक हूँ जो
दृष्टि सामंजस्य से अनकहे को समझाता है। मैं बार के कोने की टेबल पर बैठा हुआ एकांत हूँ। मैं बैरे की प्रश्नवाचक दृष्टि का अनसुलझा,अव्यक्त उत्तर हूँ।
मैं हूँ और इसका उत्सव गीत कोई भी नहीं। मैं नहीं रहूँगी उसका ऐसा मातम मचेगा मानो क्षण भर के लिए बस मैं ही थी घर भर में। एक हरी सब्जी सा फेंट दी जाऊँगी पकते समय में और थोड़े से में कई रोटियों को खा लेने के अद्भुत साहस के साथ देवता आ बैठेंगे।
मैं यीशु के चरणों पर नहीं गिरूँगी, राम के भी नहीं, मुझमें न अहिल्या है, न निरर्थक की वृत्तियाँ। मैं स्वयं का मातम मनाती एक कथा हूँ जो लिख रही हैं ध्वनि की आवृत्तियाँ। मैं बदल दूँगी वाक्यों के अर्थ ,कथा के हर्ष और विषाद के क्षणों को,तुम्हारे मानचित्र को,तुम्हारे झूठे ढकोसले वाली दुनिया के बदरंग सच को भी।
एक दम घोंटते सत्य को विखंडित करते कई शब्द। एक ढिठाई जो हमेशा से सरोकार हीन थी, एक दीनता जो एक दिन निर्णय लेकर पहुँच गयी पहाड़ी पर और कविता कब कैसे खड़ी हो गयी पर्वतों का हाथ थामे। अब वह प्रपातों से नहीं डरती, कलरव में केवल स्वर नहीं होता। इसमें गंध ,संघर्ष और गति भी होती है।
मैं कोट्टारक्करा तंपुरान (राजा) का रामनाट्टम हूँ ,मैं
मंदिरों में पुष्प बटोरती स्त्रियों का दासीअट्टम हूँ।
आश्वासन की तरह प्रेम बरसा और उसने चाहा विश्वास भीगे ,क्या संभव था? जब तक प्रेम विश्वास के साथ नहीं उखाड़ता जड़ता के बोध को व्यक्ति प्रेम नहीं करता।
जिनके के लिए प्रेम खेल है उनको प्रेम में खिलौने मिले। जिनके लिए प्रेम श्रद्धा थी,उन्हें प्रभु मिले।जिनके लिए साहचर्य ,उन्हें साथी मिले। जिनके लिए समर्पण उन्हें स्वर्ग।
जिनके लिए समय था, उन्हें जीवन के कुछ और वर्ष। जिनके लिए डर था उन्हें स्मृतियाँ मिली। जिनके लिए साहस, उन्हें साथ मिला। जिनके लिए सबकुछ उन्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रेम मिला।