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मैं तथा मैं (अधूरी तथा कुछ पूरी कविताएँ) - 14 / नवीन सागर

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जाना मैं चाहता नहीं
रोकता मुझे कोई है नहीं
कोई नहीं है
रूका मैं जहॉं.

जाना मैं चाहता नहीं
पूरे संसार के भीतर से कोई
बाहर को आता नहीं
रूको! रूको!

जाना मैं चाहता नहीं
कहीं से
रहना हर जगह रहना.

दिखा धुंधला पड़ता अभी-अभी दिखा
और मैं अभी-अभी
अपने पास!