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मैं तथा मैं (अधूरी तथा कुछ पूरी कविताएँ) - 15 / नवीन सागर
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मैं रोज बदल जाता हूं
मेरा चेहरा
नहीं बदलता
मै एक अजनबी चेहरा लगाए
किसी को अजनबी नहीं लगता
हर दस्तक पर
भीतर रह जाता हूं
हर बार मेरा नाम
दरवाजा खोलता है.