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मैं तुम्हें प्यार करता हूँ – एक/ राकेश रेणु
Kavita Kosh से
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
क्योंकि तुम पृथ्वी से प्यार करती हो ।
मैं तुममें बसता हूँ
क्योंकि तुम सभ्यताएँ सिरजती हो ।
पृथ्वी का खारापन तुमसे
उसके आँचल के जल की मिठास तुम
तुमने सिरजे वृक्ष, वन, पर्वत, पवन
तुमने सिरजे जीव, जन
ओ स्त्री, मैं तुम्हें प्यार करता हूँ,
क्योंकि तुम पृथ्वी से प्यार करती हो ।
भाषा की जड़ों में तुम हो ।
हर विचार, हर दर्शन रूपायित तुमसे
हर खोज, हर शोध की वजह तुम हो
सभ्यता की कोमलतम भावनाएँ तुमसे
कुम्हार ने तुमसे सीखा सिरजना
मूर्तिकार की तुम प्रेरणा
चित्रकार के चित्रों में तुम हो
हर दुआ, दुलार तुमसे
नर्तकी का नर्तन तुम हो ।
संगतकार का वादन
रचना का उत्कर्ष तुम हो ।
मैं तुममें बसता हूँ
क्योंकि तुम सभ्यताएँ सिरजती हो ।