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मैं तो माड़ी हो गई राम / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
मैं तो माड़ी हो गई राम
धंधा कर के इस घर का
बखते उठ कै पीसणा पीसूं
सदा पहर का तड़का
चूल्हे मैं आग बालगी
छोरे ने दिया धक्का
बासी कूसी टुकड़े खागी
घी कोन्या घर का
सास ननद निगोड़ी न्यूं कहे
तने फेरा क्यूं ना चरखा
मार कूट कै नै पापण मेरी
देवर कर लिया घर का
बड़े जेठ की मूंछ उखाड़ी
सुसरे का कालजा धड़का
मैं हठीली हट की पूरी
कहा न मानूं किसे का