भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं तोहि कैसे बिसरूँ देवा / दरिया साहब
Kavita Kosh से
मैं तोहि कैसे बिसरूँ देवा !
ब्रह्मा बिस्नु महेसुर ईसा, ते भी बंछै सेवा॥
सेस सहस मुख निसदिन ध्यावै आतम ब्रह्म न पावै।
चाँद सूर तेरी आरति गावैं, हिरदय भक्ति न आवै॥
अनन्त जीव तेरी करत भावना, भरमत बिकल अयाना।
गुरु-परताप अखंड लौ लागी, सो तोहि माहि समाना॥
बैकुंठ आदि सो अङ्ग मायाका, नरक अन्त अँग माया।
पारब्रह्म सो तो अगम अगोचर, कोइ बिरला अलख लखाया॥
जन दरिया, यह अकथ कथा है, अकथ कहा क्या जाई।
पंछीका खोज, मीनका मारग, घट-घट रहा समाई॥