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मैं न जाना था कि तू यूँ बे-वफ़ा हो जाएगा / 'सिराज' औरंगाबादी

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मैं न जाना था कि तू यूँ बे-वफ़ा हो जाएगा
आशना हो इस क़दर ना-आश्‍ना हो जाएगा

ख़ूब लगती है अगर बदनामी-ए-आशिक़ तुझे
आह करता हूँ कि शोहरा जा-ब-जा हो जाएगा

गर तुम्हारी दिल-ख़ुशी है ज़ब्ह करने में मिरे
ख़ूब जी जावे तो जावे और क्या हो जाएगा

मैं सुना हूँ तुज लबों का नाम है हाजत-रवा
यक तबस्सुम कर कि मेरा मुद्दआ हो जाएगा

मैं तुम्हारे आस्ताने से जुदा होने का नहीं
सर अगर शमशीर सीं कट कर जुदा हो जाएगा

ज्यूँ ‘सिराज’ इस शम्अ-रू पर दिल कूँ है मिलने का शौक़
फ़र्ज़-ए-ऐन-आशिक़ी सीं अब अदा हो जाएगा