मैं बुद्ध होना चाहती हूँ / सत्या शर्मा 'कीर्ति'
पाती हूँ अकसर
लेते है बुद्ध जन्म
मेरे भी अंदर
और फिर उठते हैं कई सवाल
मन की कंदराओं में
जानना चाहती हूँ
सत्य, अहिंसा, शील, ज्ञान
की असीमित सी बातें
जन्म मृत्यु के रहस्यों की
ज्ञानमयी बातें
जरा मरण के चक्र से परे की
अनगिनत बातें जानना चाहती हूँ
बचपन, यौवन, बुढापे के
चक्र को समझना चाहती हूँ
मैं बुद्ध नही हूँ
पर बुद्ध होना चाहती हूँ
पर ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों के
पकड़ से छूटता मेरा मन
मोह माया के जंजीरे तोड़
नहीं पाता
और अकसर बुद्ध को सुला
सांसारिक सुख की मृगतृष्णा में
"स्व" की पहचान ढूंढने लगती हूँ
पर पुनः किसी रात की नीरवता में
जाग जाते हैं फिर नन्हे बुद्ध
करते हैं सवाल
जीवन के सत्य और माया से
जुड़े अनेकों प्रश्न...
तब जागती है अंतर्चेतना
और तब मोक्ष द्वार पर खड़े हो
भिक्षा पात्र में "स्व" को पाना
चाहती हूँ
मैं बुद्ध नही हूँ
पर बुद्ध होना चाहती हूँ ...