भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं भारत गुण-गौरव गाता / शमशेर बहादुर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं भारत गुण-गौरव गाता !

श्रद्धा से उसके कण-कण को

उन्नत माथा नवाता ।


प्रथम स्वप्न-सा आदि पुरातन,

नव आशाओं से नवीनतम,

प्राणाहुतियों से युग-युग की

चिर अजेय बलदाता !


आर्य शौर्य धृति, बौद्ध शांति द्युति,

यवन कला स्मिति, प्राच्य कर्म रति,

अमर अमित प्रतिभायुत भारत

चिर रहस्य, चिर-ज्ञाता !


वह भविष्य का प्रेम-सूत है,

इतिहासों का मर्म पूत है,

अखिल राष्ट्र का श्रम, संयम, तप:

कर्मजयी, युग त्राता !


मैं भारत गुण-गौरव गाता।


( १९३३ में लिखित )