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मैं माँ हूँ / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’

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दर्द को खुशियों में बदलती हूँ
बिना खाए डकार लगाती हूँ
उंगलियांँ जलती है तवे पर
उफ़ तक नहीं करती
गोल रोटियाँ बनाती हूँ।
मैं माँ हूँ
नौ महीने कोख में रखती हूँ
संहालती हूँ, बचाती हूँ
कहीं कुछ होने नहीं देती
असहनीय पीड़ाएंँ सहती हूँ
दिल के टुकड़े को संहालती हूँ।
मैं माँ हूँ
जन्म देती हूँ उसे
देखकर आँखों को सुकून आता है
जान से ज्यादा ख्याल रखती हूँ
घर के लोग खुशियाँ मनाते हैं
मेरे पंख निकल आते हैं।
मैं माँ हूँ
सब कुछ सीखती हूँ
दुलारती – पुचकारती हूँ
रोने की आवाज़ पर
बिना रुके दौड़ लगाती हूँ
आँचल में ढककर दूध पिलाती हूँ।
मैं माँ हूँ
सीने से लगाए रहती हूँ
पल भर अलग नहीं करती
रात – रात भर जागकर
गिले कपड़े बदलती हूँ
साजन से दूर रहती हूँ।
मैं माँ हूँ
काला टीका लगाती हूँ
नज़रों से बचाती हूँ
ठुमक – ठुमक जब चलता लल्ला
पाँव पैजनियाँ सजाती हूँ
आफ़त दूर भगाती हूँ।
मैं माँ हूँ
दूध – भात खिलाती हूँ
कौए को ललचाती हूँ
लल्ला का मन बहलाती हूँ
देखो चंदा मामा आया
यह कहकर ललचाती हूँ।
मैं माँ हूँ
चलना उसे सिखाती हूँ
अपनी उंगली पकड़ – पकड़ कर
उसको खूब हंसाती हूँ
रात में लोरी गा – गा कर
उसको नींद सुलाती हूँ।
मैं माँ हूँ
पलकों पर रखती हूँ
चलता – फिरता – गिरता जब है
मेरी धड़कन बढ़ जाती है
ममता में बस मेरी उंगली
दातों में दब जाती है।
मैं माँ हूँ
जब है लगती चोट उसे
तो दर्द मुझे हो जाता है
पाल – पोस कर बड़ा हूँ करती
तालीम उसे सिखाती हूँ
रास्ता उसे बताती हूँ ।
मैं माँ हूँ
पर बूढ़ी अब हो गयी
अब तो दादी – नानी बन गई
ख्याल मेरा अब रखना तुम
नहीं चाहिये ताजी रोटी
बस बासी रोटी देना तुम।