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मैं वो ही करूँ जो वो कहें वो चाहें / जाँ निसार अख़्तर
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मैं वो ही करूँ जो वो कहें वो चाहें
मुझ को भी तो इस बात में चैन आता है
मनवा भी लूँ उनसे अपनी मर्ज़ी जो कभी
हफ़्तों को मेरा सुकून मर जाता है