भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं शब्दों में झूल गई / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
आयु के अनगिन आरोपों की
झड़ धूल गई
जाने कब-कब का एकाकीपन
मैं भूल गई
खुल गए हाथ बन्द
हथकड़ियों से-
जब शब्दों के
सावन-झूले
मैं शब्दों में
झूल गई