मैं ही हूँ आपकी आख़िरी उम्मीद / विम्मी सदारंगाणी
मुझसे पूछते हो कि क्या होती है दहशत!
मुझसे पूछते हो कि क्या होती है दहशतगर्दी!
मुझसे पूछते हो कि कैसे होते हैं दहशतगर्द!
मैं उस पिता का बेटा हूँ
जिसने दम तोड़ा
उस गोली को गले लगाकर
जो उन के लिये तो नहीं बनी थी।
वे तो एक अमन पसंद इन्सान थे।
मैं उस माँ का बेटा हूँ
जिसने तड़प-तड़प कर जान दी
खाँस-खाँस कर आँखें मूंद लीं इसी बंकर में।
मैं उनके लिये दवाई भी न ला सका।
मैं उस छुटकी का भाई हूँ
जो पड़ी है ज़मीन पर, आसमान के नीचे।
उस पर चढ़ी हुई है दहशत की चादर
और उसके नीचे बिछी है बारूदी सुरंग।
हर डर से बेख़बर
उसकी मासूम आँखों में समाई है मासूम शरारत।
वह जागती आँखों से ख़्वाब देख रही है
माँ की गोद का, दूध का, बिस्कुट का,
चॉकलेट का, गुब्बारे का...
मैं भी देख रहा हूँ ख़्वाब
रोटी के, पानी के, रोशनी के,
शांत हवा के, खुली खिड़की के...
मैं छिपा बैठा हूँ इस कोठरी में
पिछले कई दिनों से...
अपनी छोटी बहन को बाँहों में भरकर।
कोई तो मुझे बताए
सूरज की रोशनी कैसी होती है?
चंदा की चांदनी कैसी होती है?
पहाड़ कितने ऊँचे होते हैं?
फूल कैसे रंगों के होते हैं?
ऐसा क्यों लगता है मुझे
जैसे देखा ही नहीं सूरज, चंदा, पहाड़, फूल...
आप पूछते हैं कि मैं कौन हूँ!
किस मुल्क में रहता हूँ!
तो सुनिये -
मैं बच्चा हूँ हिंदुस्तान का
मैं बच्चा हूँ पाकिस्तान का
मैं बच्चा हूँ अमेरिका का
मैं बच्चा हूँ अफ़ग़ानिस्तान का
मैं बच्चा हूँ ईराक़ का
मैं बच्चा हूँ बोस्निया का
मैं बच्चा हूँ फ़िलिस्तीन का
हाँ, मैं बच्चा हूँ सारी दुनिया का...
सारी दुनिया मेरी है...
कोई तो मुझे बताए कि
आख़िर कौन सी ऐसी शांति है
जिसको लाने के लिये
ज़रूरत है लड़ाई की!
खू़न की! बंदूक की!
वहाँ, इस सब से
शांति आएगी एक दिन
और वह होगी आख़िरी शांति।
बस, एक ही बात कहनी है आपसे
मुझे मरने मत देना!
मैं ही हूँ आपकी आख़िरी उम्मीद...´
सिन्धी से अनुवाद : स्वयं कवयित्री द्वारा