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मैं हूं जब तक / मोहन आलोक

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मेरी कविता और
आप के बीच में
मैं हूं जब तक !
यह, आपको मुश्किल से ही
पसंद आएगी तब तक ।

अभी मैं
नश्वर और अनश्वर के बीच में
एक दीवार हूं
कविता से पहले
आपके सामने एक प्रश्न हूं
प्रश्न !
जो आपकी सोच को
प्रभावित करता है एक हद तक ।
जब मैं नहीं होऊंगा
तो यह, आप की चीज हो जाएगी
आप इस में खो जाएंगे
यह आप में खो जाएगी ।
अर्थ ढूंढेंगे आप
इस के एक एक शब्द के लिए ।

जब तक इसके साथ
इसके मेरी होने का विचार
जुड़ा हुआ है
तब तक
यह समझना चाहिए
कि एक विकार जुड़ा हुआ है
यह विकार है
कौन जाने कब तक ?


अनुवाद : नीरज दइया