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मैंने कुछ पाया नहीं है / सुरजीत मान जलईया सिंह

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ऋतु बदलती जा रहीं हैं
मैंने कुछ पाया नहीं है
मेरी नजरों में तुम्हारी
याद का मौसम वही है

गढ रहा हूँ कल्पनाएं
और पढता हूँ तुम्हीं को
अपने नयनों के पटल पर
रोज जड़ता हूँ तुम्हीं को
पा नहीं सकता हूँ जिसको
उसको पाने की ललक में
शब्दों के आवागमन का
आज भी मौसम वही है
ऋतु बदलती जा रहीं हैं
मैंने कुछ पाया नहीं है
मेरी नजरों में तुम्हारी
याद का मौसम वही है

संग मेरे चल रही हैं
मेरी ये तन्हाईयां भी
दर्द के अब दायरे में
आ गयीं पुरवाईयां भी
मुझ को मेरे हाल पर क्यों
छोड देती तुम नहीं हो
दर्द की दहलीज पर भी
आस का मौसम वही है
ऋतु बदलती जा रहीं हैं
मैंने कुछ पाया नहीं है
मेरी नजरों में तुम्हारी
याद का मौसम वही है

खो गया हूँ मैं तुम्हीं में
तुम समन्दर मैं नदी हूँ
तुम नया नूतन वर्ष हो
और मैं गुजरी सदी हूँ
लिख दिया है आज हमने
कल का वो इतिहास होगा
मेरे पन्नों पर तुम्हारी
जंग का मौसम वही है
ऋतु बदलती जा रहीं हैं
मैंने कुछ पाया नहीं है
मेरी नजरों में तुम्हारी
याद का मौसम वही है