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मैना का वृत्तान्त / प्रेम प्रगास / धरनीदास

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चौपाई:-

पुनि कहिहौ मम अस व्यवहारा। जो मैना दीन्हो वनिजारा॥
मैं दीन्हा ताको जियदाना। उन अपने मन मेह अस ठाना॥
जग ऊपर कन्या जो होई। कुँअरहिं आनि मिलावाँ सोई॥
सकल सृष्टि ढूँढयो तिन जाई। देवमूर्ति-कन्या ठहराई॥
जग ऊपर शोभा जेहिकरो। पटतर जासु न पाइय हेरी॥

विश्राम:-

सागर पार उजागरो। श्रीपुर नगर अनूप।
प्राणमती धनि सुन्दरी, ध्यान देव सो भूप॥85॥

चौपाई:-

पुनि मैना गो जलनिधिपारा। जैहवा ध्यान देव भुवपारा॥
वहुरि कुअंरि सों भयउ सनेहा। एकहि प्रान वसै दुई देहा॥
दुनि दुहु भयउ विवाह विचारा। वचा वंध विधि अन्तर सारा॥
दुहु मिलि कथेउ वहुत चतुराई। सो विस्तार कहा नहिं जाई॥
एक वरिसको कीन्ह नियारा। खोजि लियाओं राजकुमारा॥

विश्राम:-

करि प्रसन्न परमारथी, उतरो सागर पार।
आय कहेसि पुनि मोहि सन, सकल कथा विस्तार॥86॥

चौपाई:-

वचन दीढ करिवे चलि आई। मोहि से कथा सकल समुझाई॥
सुनत परम मम प्रीति जनाऊ। दिवस राति चलि पम्पहिं पाऊ॥
वीच विधाता रची जो रेखा। सो तुम सब निज नयन देखा॥
विश्वम्भरको गहि विश्वासा। मैना पंथ लियो वनवासा॥
पुनि पंखीसों होय मेराऊ। तब निश्चय देखे नृप पाऊँ॥
परमारथ पंखी नहिं पाऊँ। परम हंस के पंथहिं घाऊं॥

विश्राम:-

सेवक, चिन्ता जनि करहु, देव धरहु मन धीर।
संग सहाय प्रताप तुव, अवलम्बन रघुवीर॥87॥

चौपाई:-

इतना सुनि संगी मति कीन्हा। कहा भवो यह कुँअर को चीन्हा॥
यात्रा-अर्थ आजु हम पाओ। इतना दिन संग भरमि गंवाओ॥
जो इतना अगुमन लखि पाई। कस मैनासन होत जुदाई॥
अब हमते मैना ना आवै। कुंअर वखानहि को समुझावै॥
राजा हस्ती औ वरनारी। आप नवै कुल रीति विचारी॥

विश्राम:-

हम सब कुंअर विदा कियहु, जो मन आव विचार।
सो अब करहिं निरूपन, हम सब दास तुम्हार॥88॥

चौपाई:-

चित्रसेन वोले तेहि ठाऊं। मैं कछु कहों सुनिय सतिमाऊ॥
घरते चले कुँअर के पाहा। यह मनसा कीन्हे मन माहा॥
जंहवा कुँअर जाय तंह जइये। साथहिं साथ वहुरि फिररि अइये॥
अब जो कुंअर छोड़ि घर जाहीं। को भलपन हम सबहिं काहाही॥
जो सत सुकृत रहै रे भाई। दुहु दिशि निश्चय होय बड़ाई॥

विश्राम:-

मनमोहन जो वेष धरे, सब मिलि धरि सोय।
हमरे मन ऐसी बसें, होनी होय सो होय॥89॥