भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैल दरपन / मुनेश्वर ‘शमन’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुथ्थर छवि खातिर
अइना के साफ होना जरूरी हे।
कभी-कभी
सुन्नर से सुन्नर चेहरा भी।
जना हे कुरूप।
ई तो, धुँधला अइना के मजबूरी हे।
मितवा
तोहरा आकिरती धुँधर लखा हो।
सायत,
दरपन तोहर मैला हो।
समझऽ एकरा पर
धुंध पसरल हो
आउर परत-दर-परत
गरदा फैलल हो।