भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मॉल में भय / राकेश रोहित

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह देख कर सचमुच चकित हुआ

पैरों के नीचे ज़मीन नहीं थी, काँच था
और काँच के नीचे लोग थे!

यह नए युग का बाज़ार था
काँच से सजा हुआ
काँच की तरह
कि कोई छूते हुए भी डरे
और काँच के पीछे कुछ लोग थे बुत की तरह खड़े!

कोई देखता नहीं
यह कैसा है उल्लास का एकान्त
है खड़ा कोने में वह
अस्थिर और अशान्त!

सामने स्पष्ट लिखा हुआ
पर नहीं किसी को ख़बर है
सावधान आप पर
सीसीटीवी की नज़र है!

बाहर निकलते हुए भी नज़र करती है पीछा
यहाँ आपकी ईमानदारी की परीक्षा करता
एक दरवाज़ा लगा है!

आपसे है अनुरोध महाशय
आप इधर से आएँ!

क्या ख़रीदा है, क्यों ख़रीदा है साफ़-साफ़ बतलाएँ?
आप अच्छे ग्राहक हैं, अगर आप बेआवाज़ निकल जाएँ!