भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मोरा जोबना नवेलरा भयो है गुलाल / अमीर खुसरो
Kavita Kosh से
मोरा जोबना नवेलरा भयो है गुलाल।
कैसे घर दीन्हीं बकस मोरी माल।
निजामुद्दीन औलिया को कोई समझाए, ज्यों-ज्यों मनाऊँ
वो तो रुसो ही जाए।
चूडियाँ फूड़ों पलंग पे डारुँ इस चोली को मैं दूँगी आग लगाए।
सूनी सेज डरावन लागै। बिरहा अगिन मोहे डस डस जाए।
मोरा जोबना।