भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोरी / रेखा चमोली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

‘‘दो सौ रूपये से
एक रूपये भी कम-ज्यादा नहीं’’
कहा उसने
वह सोलह-सत्रह वर्श की लड़की
जिसे अपलक देखा जा सके
षताब्दियों तक
लेना है कि नहीं?
कांसे की थाली सी बजी उसकी हँसी

दो सौ रूपये के सौ अखरोट रखकर
और 15-20 दाने डाल दिए उसने
घर पर लेने आए हो तो
हमारी ओर से बच्चों के लिए

लौटते समय
नदी के विस्तृत पाट देखकर
सोचती हूँ
इन्हीं की तरह हैं
यहाँ की लड़कियां
सुन्दर जीवंत स्वनिर्मित।

(मोरी, उत्तरकाषी जिले का दूरस्थ, बेहद दुर्गम ब्लॉक)