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मोल! / ॠतुप्रिया
Kavita Kosh से
मुसाणां रै कन्नै
दाग स्यूं पैली
परम्परा मुजब
पाणी रौ
घडिय़ो फोड़ै
स्यात
घड़ै रै धडक़ै स्यूं
बावड़ ज्यै सांस
क्यूंकै
पैलीआळा लोग
जाणता
मिनख अर
पाणी रौ मोल।