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मोह / ओम पुरोहित ‘कागद’

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मेह होने पर
मोह अंकुराता है
धरती से
ग्रहस्थि से !

मोह
जन्मता है
अदृश्य
पीठ पीछे
इस लिए चल
अभी
सफ़र शेष है !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"