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मौज़ है मुफ़लिसी में भी यारो / दीनानाथ सुमित्र
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मौज़ है मुफ़लिसी में भी यारो
जैसे जीते हैं खूब जीते हैं
हम नहीं हैं वो जार-जमीं वाले
जो गरीबों के लहू पीते हैं