भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मौत का दिलासा / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
आज आँख रोई
तो मौत ने हाथ पकड़ लिया
आहें क्यों बहती हो
अँधेरी रातों में
सवेर बैठता है
गमों की झील नहीं रात
तेरा जीना नजायज नहीं था
अजन्ता एलोरा की गुफाओं में
बैठा है औरत का सच …
कोई भट्ठी तपती है
तो ज़िन्दगी हाथ सकती है
मुहब्बत उम्रें नहीं देखती
जा चारपाई के वे तंद बाँध
जो रस्सियाँ तोड़ सकें
फिर हम दोनों
साथ चलेंगे …