भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मौन रह कर / आशमा कौल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मौन रह कर
यह शीशा ही
बता सकता है कि
उम्र कैसे ढलती है

मौन रह कर
सिर्फ़ पगडंडी ही
बता सकती है कि
कारवाँ कैसे गुज़रते हैं

मौन रहकर
यह दिल ही
बता सकता है कि
जज्बात कैसे मचलते हैं

मौन रह कर
यह पर्वत ही
बता सकता है कि
तपस्या कैसे करते हैं

मौन रह कर
यह शून्य ही
बता सकता है कि
शोर कैसा लगता है

मौन रह कर
यह नियति ही
संकेत कर सकती है कि
सृष्टि कैसे चलती है