मौसम का जादूगर / प्रकाश मनु
समझ न आए, कहाँ से आता
मौसम का जादूगर,
अजब-अनोखे रंग दिखाता
मौसम का जादूगर!
गरमी आती तो सूरज का
गुस्सा कहर मचाता,
धरती अंगारा होती है,
सबका मन अकुलाता।
लगता दिन भर खूब नहाएँ
ऐसी आई आफत,
पंखे, कूलर में भी दिल को
मिलती जरा न राहत।
उमड़-घुमड़कर फिर आते हैं
बादल मस्ती वाले,
ठंडी बौछारों से जग को
तर करते मतवाले।
हवा सुहानी चल पड़ती है
मोर नाचते थर-थर,
हंसों की पाँतों-सी नदिया
उमड़ चली लहराकर!
फिर आता है बर्फीली-सी
ठिठुरन वाला जाड़ा,
सी-सी, सी-सी करके तन-मन
पढ़ता नया पहाड़ा।
धूप बेचारी छुपने लगती
जाने कहाँ-कहाँ पर,
घऱ में थर-थर, बाहर थर-थर
काँप रहे सब थर-थर!
फिर वसंत आता तो धरती
फूलों से लद जाती,
खूब मगन हो, वन-उपवन में
तितली नाच दिखाती।
सारी धरती ही बन जाती
फूलों का गुलदस्ता,
खुशबू वाली गलियाँ सारी
खुशबू का हर रस्ता!
मन कह उठता, ओ रे, ओ रे
मौसम के जादूगर!
तेरी लीला समझ न आती
फूँक दिया क्या मंतर?
हाँ-हाँ, सचमुच अजब निराला
मौसम का जादूगर,
जाने कितने रंग दिखाता
मौसम का जादूगर!