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मौसम मन भावन हे / मणिशंकर प्रसाद
Kavita Kosh से
रात अति सुहावन हे
मौसम मनभावन हे,
चान आउ चकोरी के
खेल बड़ लुभावन हे ।
नरम-नरम दूब से
लिपट रहल चाननी,
बेली अलबेली संग
हुमक रहल यामिनी;
मंद-मंद पुरबा के
गीत मन रिझावन हे ।
गली-गली डगर-डगर
सगरे इंजोर हे,
निंदिया के गोदी में
अदमी विभोर हे;
कोर-कोर, छोर-छोर
जोत रत जगावन हे ।
लाजबंती फूल में
लिपटल मरकंद हे,
मधुवन के क्यारी में
मादक सुगंध हे;
टपक रहल मधुरस में
केतना रस प्लावन हे ।
नरम नरम सेज पर
गोरी अधरतिया में
डूबल हे सपना में
साजन के पतिया में;
मनमा में हूक उठे
बीत रहल सावन हे ।
बीत रहल रात आउ
नींद अब अगोरिया हे,
बार-बार चान से
सबके निहोरिया हे;
धरती हे सेज आउ
चाननी बिछावन हे।