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मौसम हो गया फागुनी / यश मालवीय

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सपने मैरून हुये
शाम बैंजनी
बोलते धुधलके में
छुपी रोशनी
कौंध रहे बादल की
छांव के बसेरे
 बडा कठिन अपने से
कोई मुंह फेरे
हर जुगनू में चमकी
धूप की कनी
नाव संग डोल रहा
नदी का किनारा
जाने फिर किसने
उस ओर से पुकारा
पल भर में मौसम
हो गया फागुनी
चाय जरा छलकी
मन और और छलका
इस जरा छलकने से
समय हुआ हलका
होंठो पर अभी
हर पंक्ति गुनगुनी
सहसा ही हवा चली
फूल फूल जागा
साँसों में महक उठा
साँसों का धागा
मुश्किल से बिगड़ी सी
बात है बनी।