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मौसमी मुक्तक-सावन में रिमझिम / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
1.
सावन में रिमझिम,
बरसै फुहार।
नदिया में माँझी,
गाबै मलहारं
2.
निहुर-निहुर रोपनी,
रौपे छै धान।
अड्डा सें देखी केॅ
हरसै किसान।
3.
घिरलै आकाशोॅ में
घटा घनघोर।
मयूरी केॅ आगू में
नाचै छै मोर।
4.
साजन झुलाबै छै
छूयै आकाश।
सखी-सहेली केॅ,
हिरदय हुलास।
5.
जों प्रियतम घोॅर में,
सावन सुहावन।
नैं तेॅ रौरब नरक
काँटा रं नंदन वन।