म्येन कशीर / त्रिभवन कौल
मेरा कश्मीर, मेरा कश्मीर
था जो कभी स्वर्ग की तस्वीर
मेरा कश्मीर, मेरा कश्मीर
चेहरा
शांत और सौम्य
होंठ
मुस्कुराते
ऑंखें
अपलक
सैलानियों का आवागमन
निहारे
स्वागत करने को तत्पर
निशात, शालीमार
बाँहें पसारे
अपने में समेटने को तैयार
नगीन जैसी झीलें
डल के शिकारे
चिनार, बादाम, सेब के पेड़
केसर के बाग़
कड़म का साग
"हाको- हाक"
"येखो- यख’‘ की आवाज़
उस मस्ती के आलम में
संतूर का साज़
तैरते खेत
स्थिर हौऊसबोट
बहती जेहलम पर
नावों की दौड़
सफ़ेद बर्फ की परत दर परत
गगनचुम्भी चोटियों पर
कुदरती हरियाली पर
बेमिसाल गरत
शंकरचार्या, पर्वत, गणपतयार, खीरभवानी
और बेमिसाल ऋषियों की अमर वाणी
चरारे- शरीफ
खान: खा:
बरबस निकलता था
वाह बस वाह
यह था ताज
मेरे भारत का ताज
आज भी है
पर नहीं भी है
जो कभी था अब नहीं है
कहाँ गया मेरा कश्मीर?
म्येन कशीर- म्येन कशीर?
कहाँ गए
वह बर्फीले हरे चेहरों को नापते
सेलानियों की खोजती आँखें
निमंत्रण देते वह होंठ
गले लगाने को आतुर
फैली हुई बाँहें
क्या रहा शेष, अब?
हाय! क्या रहा शेष?
बेजान घाटी का
एक ऐसा शरीर
जिसके दिमाग, दिल, गुर्दे का
कर दिया हो
प्रत्यारोपण
किसी अज्ञात सर्जन द्वारा
लहूलुहान चेहरा
कटे फटे होंठ
वीरान आँखें
अधकटी बाँहें
रक्त से लथ पथ
बेबस
कोमा में गए
उस इंसान की तरह
जो जागता है फिर सोता है
या फिर स्थिर आँखों से निहारता है
ऑपरेशन टेबल पर हमारा पलायन
सत्य से
कश्मीरियत के तत्व से
हाय मेरा कश्मीर!
म्येन कशीर
कोई तो दे मुझे
म्येन कशीर मेरा कश्मीर!