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म्हारै माथै छात / धनपत स्वामी
Kavita Kosh से
जणां कणैई
हुवै मन अणमणो
खुरसी माथै टंग्यो डील
गोखै तो है छात रा सैंथीर
सोधै बां बल्यां में
ढब्योड़ो हुवै
म्हारी अबखायां रो कोई उपाय
कोई ऐडो सांवठो गेलो
जिको पुगावै पार
ओळपंचोळी अणमणी मनस्या रै
हियै में ढुकावै
आस री कोई किरण
जिण रै च्यानणै
भर लेऊं जूण रा दोय पांवडा।
म्हारी हरख-मुळक माथै
जमीं अबखायां री धूड़
जिकी बणगी अब चिट्टो
जिण नै हटावण री
नीं सूझ अर कोई जुगती
छात भी साव नटती सी लखावे
भींतड़्यां दुड़ण रा
काढती लखावै ओळाव
इणींज दोगाचींती में नींद
चिटूली आंगळी थाम
ले जावै नवै दिन रै
नवै सवेरै सूं भेंटा करावण
पण म्हारै भेजै
अटल सागी सुवाल
काल भळै जामसी
नवीं चिंतावां
उणां रै उपाव री विद
कद जामसी
पण छातां म्हारै माथै
बिंयां ई रैवै मुंधीज्योड़ी।