भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

म्हूं चावूं / ॠतुप्रिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जद बिरखा आवै
तद म्हूं चावूं
कै बैंवतै पाणी में
कागद री
नाव बणा’र चलाऊं

टाबरां नै
इस्कूल जांवता देख’र
म्हूं चावूं
कै मगरां माथै
बस्तौ लटकाय’र
उछळती-कूदती
बांरै साथै इस्कूल जाऊं

गळी रै टाबरां नै
लुकमीचणी खेलतां देख’र
म्हूं चावूं
कै म्हूं ई कठैई लुक ज्याऊं

म्हूं चावूं
अर
भगवान स्यूं करूं पराथनां
कै अेकर-अेकर
फेरूं टाबर बण ज्याऊं।