यन्त्रावतार / विंदा करंदीकर / निशिकान्त ठकार
आओ हे यन्त्र, आओ !
शस्य-श्यामला सृष्टि को गले लगा
समाजपुरुष ने जो मैथुन किया
उस उत्कट सुरत के
विज्ञानात्मक दाहक वीर्य से
फ़ौलादी जिसका पिण्ड बना
वह तुम अवतारी यन्त्र !
युगधर्म का संवर्धन करने आओ
आओ, क्रान्ति की प्रसव-वेदनाओं को लेकर आओ
इतिहास के गर्भ का कर विच्छेद
त्रिविक्रम के ग्यारहवें हे अवतार !
आओ हे यन्त्र, आओ !
आकाश की आवाज़ को बुलन्द करती हुई
क्षुब्ध-क्षुधा की शक्ति आ गई जय-जयकार पुकारती;
पेट पर हड्डियों को पीटकर ललकारती है ऊँचे स्वर में;
इस यन्त्र को स्वीकार करो;
इस यन्त्र का सत्कार करो;
इस यन्त्र का वेदोक्त करो पूजन;
साम्यवेद का पंचम वेद कहो रे !
अग्निकलिका यह, लाल ध्वजा यह, इसे यन्त्र के सिर पर चढ़ाओ
अग्निकलिका यह —
शोषितों के पेट की अग्नि की ज्वाला;
पद-दलितों की आँखों के क्रोध की यह लाली;
नीति का प्रगति को लगाए कुंकुम तिलक ।
इस यन्त्र को स्वीकार करो;
इस यन्त्र का सत्कार करो;
अग्निकालिका को चढ़ाओ इस यन्त्र पर
आओ, आओ हे पामर; अब बन जाओ परमेश्वर ।
स्वर्गंगा का पट्ट ब्रह्म के चक्र पर चढ़ाकर
इस यन्त्र को स्वीकार करता है विश्व-विधाता ईश्वर !
आओ, हे यन्त्र आओ !
आओ, सृष्टि को रचते हुए आओ;
आओ, दुखियों को सुख देते आओ;
आओ, ब्रह्मा विष्णु शिव होकर आओ;
आओ, नवीन रचना के वेदों का उच्चार करते आओ;
आओ, घुमाते अपना चक्र सुदर्शन आओ;
आओ आओ, नाचते हुए युगप्रवर्तक ताण्डव;
आओ आओ, भाप के फूत्कारों को फेंकते हुए;
आओ आओ, आँखों से बिजलियों को चमकाते हुए;
आओ आओ, अणु-अणु की बेड़ियों को तोड़ते हुए;
शक्ति के हे सम्राट !
चिर शान्ति के हे भाट !
आओ आओ, ढूँढ़ते हुए छिपे मन्त्रों को;
मानवता को दो ज्ञान द्वारा मुक्ति का नज़राना !
आओ यन्त्र ! आओ यन्त्र !
'खड़ खड़ खड़ खड़ खड़'
कुचलते हुए आओ, दनदनाते हुए आओ,
सड़ी-गली हड्डियों को;
अस्थि-आटे से पोषित
नए बीज, अंकुर नए !
'धिक धिक धिक धिक धिक धिक'
सड़ गया, झड़ गया जो उसे
घोर नाद से धिक्कारते हुए !
'धड़ धड़ धड़ धड़ धड़ धड़'
मन्त्रबल से उद्घोषित करते हुए
सृजनात्मक रचना को !
आओ यन्त्र ! आओ यन्त्र !
मन्त्रों की विजय करते हुए
स्वप्नों को स्वीकार करते हुए !
उच्चार करते हुए ! आकर देते हुए !
आओ यन्त्र ! आओ यन्त्र !
जलाते हुए आओ, धुलाते हुए आओ,
भक्षण करते हुए आओ, रक्षण करते हुए आओ,
तोड़ते हुए आओ, जोड़ते हुए आओ,
काटते हुए आओ, बोते हुए आओ,
पटेला चलाते आओ, अण्डराते आओ,
लाल पालों को
खोलते हुए
लाल लाल सागर पर
लाल लाल क्षितिज से
आओ यन्त्र ! आओ यन्त्र !
मन्त्रों को अर्थवान करते हुए
स्वप्नों को स्वीकार करते हुए
उच्चार करते हुए, आकार देते हुए,
आओ यन्त्र ! आओ यन्त्र !
नवदानवों का करते हुए संहार
नव मानवों का करते हुए निर्माण
उद्घोष करते हुए नवमूल्यों का
उद्घोष करते हुए क्रान्तिपाठ का —
पृथिवीक्रान्तिरंतिरिक्षंक्रान्तिद्यौः क्रान्तिर्दिशः क्रान्तिरवांतरदिशाः क्रान्तिरग्निः
क्रान्तिर्वायुः क्रान्तिरादित्यः क्रान्तिश्चन्द्रमाः क्रान्तिर्नक्षत्राणि
क्रान्तिरापः क्रान्तिरोषधयः क्रान्तिर्वनस्पतयः क्रान्तिर्गौः क्रान्तिरजा
क्रान्तिरश्वः क्रान्तिः पुरुषः क्रान्तिर्ब्रह्म क्रान्तिर्ब्राह्मणः क्रान्तिः क्रान्तिरेव क्रान्तिर्मे
अस्तु क्रान्तिः
ॐ क्रान्तिः क्रान्तिः क्रान्तिः।
मराठी भाषा से अनुवाद : निशिकान्त ठकार