भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह अंदेस सोच जिय मेरे / रैदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह अंदेस सोच जिय मेरे ।
निसिबासर गुन गाऊ~म तेरे ॥टेक॥

तुम चिंतित मेरी चिंतहु जाई ।
तुम चिंतामनि हौ एक नाई ॥१॥

भगत-हेत का का नहिं कीन्हा ।
हमरी बेर भए बलहीना ॥२॥

कह रैदास दास अपराधी ।
जेहि तुम द्रवौ सो भगति न साधी ॥३॥