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यह अपराध नहीं है / अंजना वर्मा
Kavita Kosh से
वे दे रहे हैं
फाइव स्टारों में लंच-डिनर
पर घर की थाली मेज पर
धरी रह जाती है
दिन पर लिखा है उनका नाम
रात भी उनकी मुट्ठियों में समा जाती है
पत्नी तरसती है
घर में साथ खाने के लिए
बच्चे तरसते रह जाते हैं
पिता की गोद में बैठने के लिए
माँ तरसती रह जाती है
बेटे से दो बातें करने के लिए
अपने घर को घर बनाने के लिए
अपने ही घर से निष्कासन ले लेना पड़ता है
स्वेच्छा से
वे कागज के टुकड़े हमेंं थमाकर
हमसे छीन रहे हैं हमारा समय
पैसों के ढेर पर बैठकर भी
फुर्सत के मामले में
कंगाल हो गये हैं हम
हमसे हमारे समय को छीनकर
उन्होंने हमें ज़िन्दगी से
बेदखल करने की कोशिश की है
पर यह आज की दंड-संहिता में
अपराध नहीं है