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यह कैसी आजा़दी है? / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
अभी-अभी बम के धमाको़ से
चीख़ उठा है शहर
बच्चे, बूढे,जवान
खून से लथपथ
अनगिनत लाशों का ढेर
इस हृदय वारदात की
कहानी कह रहा है
ओह!
यह कैसी आजा़दी है
जो घोल रही है
मेरे और तुम्हारे बीच
खौ़फ, आग और विष का धुआँ?
हमारे होठों पे थिरकती हंसी को
समेटकर
दुबक गई है
किसी देशद्रोही की जेब में
और हम
चुपचाप देख रहे हैं
अपने सपनों को
अपने महलों को
अपनी आकांक्षाओं को
बारूद में जलकर
राख़ में बदलते हुए.