भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह ख़रीद लीजिए प्लीज़ ! / विनय सौरभ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{{KKCatK avita}}


पूरी दुनिया में चक्कर काटने के बाद सुष्मिता सेन हमारे घर की स्त्रियों के लिए एक नायाब चीज़ ढूंढ लाईं
उस सेनेटरी नैपकिन के बारे में उम्दा ख़्याल रखते हुए उसने बताया -
यह ख़रीद लीजिए, यह सबसे अच्छा है !

यह सबसे अच्छा है ! वंडरफुल !
- इसे तो आप ख़रीद ही लें !
एक साबुन की झाग में अर्धनग्न एश्वर्य राय ने पुलक में भरकर कहा

एक जूते से पूरे विवस्त्र शरीर को कलात्मक ढंग से ढँकते हुए मधु सप्रे की आँखों में आवारगी और आमंत्रण था -
यही लीजिए, मेरी तरह टिकाऊ खूबसूरत और मजेदार !

गर्दन उरोजों और सुडौल टाँगों पर उंगलियाँ फिराते हुए मिस फेमिना ने मर्दो को बताया - इससे मुलायम और क्या हो सकता है भला !सेविंग के लिए प्लीज यह ब्लेड लीजिए !

इसका एहसास कितना खूबसूरत है !
काश मैं बता सकती आपको....
नशीली आंखों से एक कंडोम के अनुभव को साकार करते हुए पूजा बेदी ने कहा -आप अगली बार यही आजमाएंगे ,आई होप !

नौ गज़ की साड़ी पूरे बदन पर लपेटने के बाद भी नंगी पीठ दिखलाती हुई संगीता बिजलानी मुस्कुरा रही थीं - हाय यह मेरी तरह हल्की है इसे लीजिए ना !

मैं छह बच्चों की माँ हूँ !
पर मेरे बालों की चमक तो देखिए !
एक शैम्पु की दुनिया में अब शोभा डे भी महक रही थीं और उनके भी होंठ उसे खरीद लेने के अनुरोध और उत्तेजना में काँप रहे थे
                        ••••••

ये आम स्त्रियों की तरह ही हाड़ मांस की औरतें थीं पर उन्मादित ढंग से हमारी दुनिया में बेखौफ़ आ गई थीं
इनका ख़ास मक़सद हमारी बेरौनक दुनिया को सुंदर बनाना था
यह महकती हुईं औरतें थीं-
युवा और आकर्षक !
उकताहट से परे जिंदादिल और आत्मविश्वास से भरी हुईं,
जो बाज़ार को घर ले आने की सारी कलाएँ जानती थीं

इनकी उंगलियाँ गीले आटे के एहसास से नावाकिफ़ थीं
इन्हें अपने बच्चों को तैयार करके स्कूल भेजने की ज़ल्दी में नहीं जीना था और ना ऑफिस जाते पतियों के लिए टिफिन तैयार करना था

ये वो पिलपिली नहीं थीं जिन्हें डॉक्टर के पास, बनिए के पास रोज के सौदा सुलफ़ के लिए जाना था

उनके भीतर निरंतर फैलता हुआ एक इत्मीनान था
रोजमर्रा की चीज़ों के लिए परिचित और लिजलिज़ा अफसोस नहीं

इन्हें सोहर नहीं गाना था, व्रत नहीं रखने थे !

ये छोटी- मोटी अधूरी आकांक्षाओं की मारी स्त्रियाँ नहीं थीं
छोटे-छोटे सुखों के लिए आह भरती कुंठा नहीं थीं
संभवतः ये चाँद से उतरी थीं और सितारों से मुखातिब थीं

हमारी दुनिया को थोड़ा और बेहतर बनाने के लिए रूमानियत से लबालब पैमाना थीं सुनहरा अवसर थीं - जिससे हम सब को चुकना नहीं था

यह हमारे घर की स्त्रियों, लड़कियों के लिए सपना थीं
जीवन का मकसद थीं, जिन्हें हर हाल में उन्हें पूरा करना था

यह संस्कृति की भाषा में बाजार थीं
बाजार की भाषा में उत्तेजना
विज्ञापन की भाषा में बाग का ताजापन थीं
ये नई बाज़ार व्यवस्था का रुमान थीं

बेहद शालीन ढंग से उच्छृंखल होती स्त्रियाँ थीं

ये औरतें एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी थीं
जिन्हें काफी संभालकर सावधानी और समझदारी के साथ उतारा गया था सुंदर और खुशहाल बनाने को हमारी दुनिया में .....
                
   •••••

अब आपका झुंझलाना व्यर्थ है !

यह औरतें तब एक महज अनुरोध थीं
सिर्फ़ एक नादान शख्सियत !
आप ही के शब्दों में शालीनता की परिभाषा थीं

गौर कीजिए ......
वे चोर दरवाज़े से नहीं आई थीं हमारे घरों में
आपने उन्हें आते हु​​ए देखा था सामने से
आप ने ही उन्हें गले लगाकर दरवाज़े से भीतर बुलाया था

फिर आपने ही उन युवा आकर्षक आक्रामक और स्वप्न में डूबी अवास्तविक औरतों से कल्पना में प्रेम किया था

आपने ही सबसे पहले उत्साह में पत्नी का कंधा दबाते हुए उन औरतों के बारे में कहा था कोई हौसलेमंद वाक्य

तब ये अनुरोध करती औरतें आपके दरवाज़े पर खड़ी थीं
          
 •••

​​​​​​