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यह दीपक बुझ जाने वाला / केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’

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यह दीपक बुझ जाने वाला
यह आलोक बिलाने वाला

तुम निहार दो, भर जाएगा, तुम में अमर प्रकाश
ज्योति आज के जग की झूठी
मन क्या कहे, मानसी रूठी

तुम निहार दो, खिल जाएगा हृदय-कमल सविलास
नभ विस्तार मांगने आता
सागर स्वयं दास बन जाता

तुम निहार दो, बन जाऊं मैं जीवन का विश्वास
प्रलय विवर्त तुम्हारे मन का
लय में संलय निहित सृजन का
तुम निहार दो, विश्व कमल में फूटे मेरा हास