यह दुनिया क्या अमिट है / शिवनारायण जौहरी 'विमल'
यह दुनिया क्या अमिट है
यह धुया धुया-सा नीलाभ
लिपटा हुआ है चारों तरफ
मेरे बदन को देता है
प्रेरणा और ज़िंदगी
न मैं उसको छू सकता हूँ
न वह मुझसे चिपका हुआ है
न उसका कोई मुखड़ा है
न हाथ पैर या दूसरे अवयव
उससे हार जाती है गहराई और दिशाए
छोटी से छोटी बूंद में घुस जाता है बिना अड़चन
उनको भरने के लिए दौड़ता फिरता है
चारो तरफ रेशमी आकाश में
एक लड़का मारता है
पत्थर पानी की सतह पर
पत्थर उछलता कूदता
चला जाता है कुछ दूर तक
और फिर डूब जाता है सागर में
पता नहीं डूबने के बाद
हो जाता है सागर या मुखोटा दूसरा
इस तरह हर ज़िंदगी छोटी-सी पहल होती है
हर पहल का अंत अपने आप आता है
एक आवाज जाती है थोड़ी दूर तक और घुल जाती है
वातावरण में आँख से हम कुछ दूर तक ही देख सकते है
भाला थोड़ी दूर तक ही बार करता है
आदमी की म्रत्यु आकर खड़ी हो जाती है सामने
आगे का सब कुछ अंधेरे में डूब जाता है
इस तरह मौत का तांडब
घूमता रहता है दुनिया में॥