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यह देश / रणजीत
Kavita Kosh से
यह देश अभी शैतानों का
चोरों का, बेईमानों का
पिसता मजदूर किसान यहाँ
कैदी है हर इन्सान यहाँ
दीवारें तोड़ गिराएँगे
पूँजी का राज मिटाएँगे।
है प्यार अभी मजबूर यहाँ
हीरें राँझों से दूर यहाँ
राँझों के अंदर आग उठी
हीरों के दिल में जाग उठी
अब दुनिया नई बसाएँगे
पूँजी का राज मिटाएँगे।
कानून यहाँ पर सोने का
कुछ भी न असर है होने का
आँसू का, रोने-धोने का
मंतर का, जादू-टोने का
कह दो विद्रोह जगाएँगे
पूँजी का राज मिटाएँगे।