यह धरती / बरीस पास्तेरनाक
मॉस्को के घरों में
फूट पड़ी है बहार बड़ी शोखी से ।
वॉर्डरोबों के पीछे से मक्खियाँ भनभनाने लगीं
वे रेंगती हैं गर्मी में पहने जाने वाले टोपों पर ।
छिपा दिए गए हैं रोएँदार कोट बक्सों में ।
कठमंज़िलों के जंगलों पर
रखे हुए हैं फूल और वल्लरियों के गमले ।
प्रशस्त खुली हवा की सुरभि
व्याप्त है कमरों की साँसों में
कार्निसों पर से धूल की गंध आती है ।
निचली सतह की खिड़कियों के समानांतर
सड़क मिलकर जैसे दोस्त हो गई हो
दरिया की छाती पर उजली रात और सूर्यास्त-प्रकाश का
सीमा-विभाजन नहीं हो सकता ।
गलियारे में सुना जा सकता था
कि दरवाज़े के बाहर क्या-कुछ हो रहा था
और सुनी जा सकती थी अप्रैल मास की बेतरतीब गप्प,
ओलती से पिघली बर्फ़ के टप-टप चूते जल-संगीत के साथ ।
अप्रैल का महीना हज़ारों किस्से जानता है
मानवीय दुख-दर्द के
और सीमाओं से सटकर गोधूलि, बढ़ती ठंडक के साथ
कहानी के ताने-बाने बुनती है ।
खुली हवा और घरेलू सुविधा के बीच
एक ही मिश्रण है ताप और उद्विग्नता का ।
हर तरफ़ हवा महसूस करती है
अव्यवस्था ।
वही मुलायम फुनगियाँ
वही उजली प्रस्फुटित होती कलियाँ
जंगलों की चौखट पर हैं
और चौराहों पर सड़कों पर और कारखानों में ।
तब ये सीमाएँ क्यों रो रही हैं धुंध में
और ये गोबर की तीखी दुर्गंध क्यों आ रही है ?
निश्चय ही तब क्या यह मेरी अपनी पुकार है
कि दूरियों को नहीं होना चाहिए हतोत्साह
कि शहर की सीमाओं से परे
अकेला नहीं महसूस करना चाहिए धरती को ।
यही कारण है कि वसंत के प्रारंभ में
हम जमा होते हैं अपने दोस्तों के साथ हर शाम ।
हमारी शामें होती हैं विदाई के आयोजन
और हमारे मिलन होते हैं हमारे वसीयतनामे,
ताकि यातना का प्रच्छन्न प्रवाह
जीवन के सर्द पहलू को उष्णता प्रदान कर सके ।
अँग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : अनुरंजन प्रसाद सिंह