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यह मन भयो विषयको चेरी / स्वामी सनातनदेव
Kavita Kosh से
राग मधुवन्ती, तीन ताल 13.7.1974
यह मन भयो विषय को चेरो।
बहुत भाँति सिख देहुँ याहि, पै फिरत न मेरो फेरो॥
कहा करों धावत इत-उत ही, चलत न कछु बस मेरो।
प्रतिपल तिन ही में भटकत है, गटकत गरल घनेरो॥1॥
स्याम-सुधा पायो, पै पामर चलत मोह-मद-प्रेरो।
पाये हूँ नहिं पियत मोह बस, वृथा फिरत भट-भेरो॥2॥
अपनो बल-छल काम न आवत, होत न नैंकु निबेरी।
जो कर धरि काढ़हु तुम प्रीतम! तो उर होय उजेरो॥3॥
पर्यौ पुकार करों मनमोहन! विषय-व्यालसों घेरो।
तुम बिनु कोउ न दीखत ऐसो जो करि सकै निवेरी॥4॥
दीन जानि अपनावहु प्यारे! हौं सरनागत तेरो।
सरन गहे की लाज राखि हरि! राखहु विरद बड़ेरी॥5॥