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यह संसार विधाता तुमने कितनी बार... / श्यामनन्दन किशोर
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यह संसार विधाता तुमने कितनी बार...
यह संसार विधाता तुमने कितनी बार बसाया होगा;
पर न तुम्हारी आँखों में करुणा का जल लहराया होगा!
विद्युत् के धागों से सीते
तुम नभ का गीला अम्बर हो!
दाता, तुम माया की वंशी
में भरते जीवन का स्वर हो!
यों ही नवल प्रकृति का उपवन कितनी बार बसाया होगा;
पर न तुम्हारा मन पतझड़ की डालों ने उलझाया होगा।
स्रष्टा, क्या निर्माण कि अपनी
रचना से अनमेल रहे तुम!
दोष भला क्या मिट्टी की
प्रतिमा का, जिससे खेल रहे तुम?
माना तुमने बहुत दर्द इन नादानों से पाया होगा;
तुम्हें ध्यान निज नादानी का, पर बेदर्द न आया होगा।
(21.1.55)