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यहाँ / केशव
Kavita Kosh से
यहाँ
पेड़ हैं
पहाड़ हैं
धूप है
बरसात है
ख़ूबसूरती है
शांति भी
लेकिन
पेड़ के सीने पर आरी भी
पहाड़ के सीने में बारूद भी
धूप के दरवाज़े पर
बादलों का पहरा भी
बरसात के सीने में
बादल फटने का कहर भी
ख़ूबसूरती के सीने पर
एक-एक कर पड़ते
कंकरीट के दाग भी
शांति के सीने को तार-तार करते
आयातित कहकहे भी
और
इन सबके ऊपर है
तरक्की के सीने में घात लागाये
ज्वालामुखी का आतंक