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यहाँ कुछ पेड़ हैं / परमेन्द्र सिंह
Kavita Kosh से
यहाँ अपनी छायाओं को बचाते कुछ पेड़ हैं। उनकी छायाओं में एक कवि और एक हत्यारा दोनों सुस्ता रहे हैं।
चिड़ियाँ शोर मचा रही हैं और गा रही हैं। पास ही कहीं से पानी की कल-कल सुनायी दे रही है, जिसे सुनकर
दोनों आह्लादित-विस्मित हैं। कुल्हाड़ी की आवाज़ नेपथ्य में अनिवार्य संगीत की तरह मौजूद है।
इस दृश्य को रचने वाला सूर्य आसमान में बादल और इन्द्रधनुष को सजा रहा है। रोशनी की एक धार पत्तों के
बीच से कवि और हत्यारे के बीच सर्चलाइट-सी कुछ ढूँढ़ रही है।
रोशनी का घेरा बड़ा हो रहा है। कवि और हत्यारा दोनों बेचैन हो उठे हैं और पसीना पोंछ रहे हैं।