यही दृश्य / शहंशाह आलम
रद्दी से रद्दी मौसम में
उकडूं बैठना चाहता है जब आदमी
कुछ तय करना चाहता है
क़रीब ही पड़ा होता है तेज़ हथियार
निर्णय लिया जा चुका होता है
आदमी के विरुद्ध किसी अंधेरे हिस्से में
पृथ्वी पर अंतरिक्ष की
फालतू चीज़ें गिरती हैं हज़ार
सुदूर प्रदेश से आने वाली चिडि़यां
गमकता है जिनका आस पास अनूठे प्रेम से
सबसे बढि़या पेड़ हाथ लगता है
कठफोड़वा को
सबसे लंबी नदी हाथ लगती है
शिकारी बगुले को
जबकि उन्मादी छींटकर रखते हैं
उनके लिए दाना और आदमियों के लिए
कुछ डराने वाले तिलचट्टे
कुछ डराने वाले एलियन
स्थगित कर देते हैं हत्यारे
अपने सारे सैर-सपाटे
हम पर फिदा होते हैं बेतरह
मेज़ें सजाते हैं
फिल्में दिखाते हैं
डरावने बनाकर नहीं रखते
अपने चेहरे को उस समय
जब तक आदमी उनके भरोसे के क़ाबिल बना हुआ है
बना हुआ है हमख़्याल हमसफर हमक़दम
दे रहा है उनको अपना ख़ून पीने के लिए
देते हैं वे आदमी को तब तक
बीड़ी पीने के लिए ताड़ी
देते हैं वे हमको आश्वासन
बना रहेगा तुम्हारे नाम राशनकार्ड
बना रहेगा तुम्हारे नाम तुम्हारा घर
रहेंगे तुम्हारे माल-असबाब तुम्हारे ही
अगर कहना मानते रहे हमारा
अगर तुम करते रहे हमारे लिए सभाएं
और गोष्ठियां भी करते रहे
ऐसे ही आश्वासन देंगे हमारे अपहरणकर्ता हमारे बलात्कारी
तैयार रखेंगे अपने हाथों में ख़ंजर
यही दृश्य हम देख रहे हैं शताब्दियों से
हमारे पास वाले
तेज़ हंसिए को भुलाकर।