भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यही हालात इब्तदा से रहे / जावेद अख़्तर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यही हालात इब्तदा<ref>शुरु</ref> से रहे
लोग हमसे ख़फ़ा-ख़फ़ा-से रहे

बेवफ़ा तुम कभी न थे लेकिन
ये भी सच है कि बेवफ़ा-से रहे

इन चिराग़ों में तेल ही कम था
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे

बहस, शतरंज, शेर, मौसीक़ी<ref>संगीत कला</ref>
तुम नहीं रहे तो ये दिलासे रहे

उसके बंदों को देखकर कहिये
हमको उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे

ज़िन्दगी की शराब माँगते हो
हमको देखो कि पी के प्यासे रहे

शब्दार्थ
<references/>